गुजारीश
मैंने आंसुओं से अपने गुजारीश की हैआंख में ही बरसे यही फर्माईश की है
जख्मों को बहने दो कौन नहीं जख्म बिना
खून से ही सिंचने की अब साजीश की है
कौन कहे खुशी नहीं, फर्क ही क्या उसके बिना?
खूब हंसते रहने की अब आजमाईश की है
अब तो जिंदगानी गुजरेगी शिकायत बिना
मरकर जिंदा रहने की जो ख्वाहीश की है
-अमर पवार
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा